राजा पोरस
राजा पोरस का जीवनी
राजा पुरुवास या राजा पोरस
का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान लाहौर के
आस-पास इसकी राजधानी थी। राजा पोरस (राजा पुरू भी) पोरवा राजवंश के वशंज थे, जिनका साम्राज्य पंजाब में झेलम और चिनाब
नदियों तक (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) और उपनिवेश ह्यीपसिस तक फैला हुआ
था।।
राजा पोरस (King Porus) और सिकन्दर की कहानी काफी मशहूर
है जिसे ना केवल एतेहासिक लेखो में बल्कि लोगो की जुबान पर भी इनके बीच हुए युद्ध
की कहानी याद है | यूनानी
इतिहास में ना केवल सिकन्दर की बहादुरी की प्रशंशा है बल्कि पोरस की प्रसंशा भी की
गयी है | आइये आज हम आपको उस महान राजा पोरस की जीवनी से
रूबरू करवाते है |
राजा पोरस (King Porus) पौरवो का राजा था जिनका
साम्राज्य झेलम और चिनाब नदी के बीच फैला हुआ था | पौरवो का
उद्गम महाभारत काल का माना जाता है | जो राजा चन्द्र वंश
निकले वो चन्द्रवंशी कहलाये थे | ययाति नामक एक राजा इसी
प्रकार का एक चन्द्रवंशी राजा था जिसके दो पुत्र थे पुरु और यदु | पुरु के वंशज पौरव कहलाये और यदु के वंशज यादव कहलाये | इसलिए राजा पोरस एक चन्द्रवंशी राजा था जो ययाति का वंशज था | चन्द्रवंशी होने के कारण उसका पराक्रम और बल अकल्पनीय था | पौरव ही वो शासक थे जिन्होंने फारसी राजाओ डेरियस और जर्कसीज को युद्ध में
पराजित किया था | Cyrus the Great इन्ही युद्धों में भारतीय योद्धाओ के साथ युद्ध करते हुए मारा गयाथा |
महायुद्ध के दौरान सिकन्दर
की रणनीति और पोरस की बहादुरी
सिकंदर जानता था कि पोरस
जैसे पराक्रमी राजा को हराना इतना आसान नहीं है। इसलिए उसने चालाकी से काम लिया।
झेलम नदी के किनारे पर उसने अपनी सेना खड़ी कर दी और ऐसा दिखावा करने लगा मानो वे
लोग नदी पार करने का रास्ता ढूंढ रहे हों। कई दिन इस तरह बीतने पर पोरस के पहरेदार
कुछ कम चौकन्ने हो गए। इसी बीच सिकन्दर नदी की दिशा में करीब 17 मील ऊपर हज़ारों
सैनिकों और घुड़सवारों के साथ नदी पार कर गया।
पोरस की सेना अभी भी यही
मान रही थी कि सिकन्दर नदी पार करने का रास्ता ढूंढ रहा है जबकि सिकन्दर दूसरी और
से खुद उनके समीप पहुँच चुका था। अचानक हुए हमले से पोरस की सेना घबड़ा गयी पर फिर
भी उन्होंने कड़ा मुकाबला किया।
बारिश के कारण पोरस के रथ
मिट्टी वाली ज़मीन पर सहजता से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे और कीचड़ में धंस जा रहे थे।
लेकिन पोरस की सेना में शामिल हाथियों ने सिकन्दर की सेना के पसीने छुड़ा दिए और
पोरस की सेना को सम्भलने का मौका दिया। पर इसी बीच नदी के उस पार इंतज़ार करने का
नाटक कर रहे सिकन्दर के कमांडरों ने भी नदी पार कर हमला बोल दिया।
सिन्धु और झेलम
सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य
में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी
तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे।
पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या
है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा
घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।
इतिहासकार मानते हैं कि
पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार
करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी
के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।
जब सिकंदर ने आक्रमण किया
तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की
गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस
के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात
लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता
स्वीकार नहीं।
पृष्ठभूमि
पोरस पर उपलब्ध एकमात्र
जानकारी यूनानी स्रोतों से है इतिहासकारों ने हालांकि तर्क दिया है कि उनके नाम और
उनके डोमेन के स्थान पर आधारित पोरस को ऋगवेद में उल्लेखित पुरू जनजाति के वंशज
होने की संभावना थी। इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद ने कहा कि पोरस यदुवंशी शोरसेनी हो
सकता था। उन्होंने तर्क दिया कि पोरस के मोहरा सैनिकों ने हेराकल्स का एक बैनर
जिसे मेगस्थनीस ने देखा था, जो पोरस
के बाद भारत की यात्रा पर चन्द्रगुप्त द्वारा मथुरा के शोरसैनियों के साथ स्पष्ट
रूप से पहचाने गए थे। मेगास्थनीस और एरियन के हेराकल्स कुछ विद्वानों द्वारा कृष्ण
के रूप में और अन्य लोगों द्वारा उनके बड़े भाई बलदेव के रूप में पहचाने गए हैं,
जो शोरसेनीस के पूर्वजों और संरक्षक देवताओं दोनों थे। इशहरी प्रसाद
और अन्य, उनकी अगुवाई के बाद, इस
निष्कर्ष का अधिक समर्थन इस तथ्य में पाया गया कि शोरसेनियों का एक हिस्सा कृष्णा
के निधन के बाद पंजाब और आधुनिक अफगानिस्तान से मथुरा और द्वारका के लिए पश्चिम की
ओर पलायन कर रहा था और वहां नए राज्य स्थापित किए थे।
मृत्यु
अगर हम पोरस को राजा
पर्वतक ही समझे तो उसकी मृत्यु एक विषकन्या द्वारा हुई थी। और कुछ इतिहासकार यह
बताते हैं कि सिकंदर के एक खास सेनानायक यूदोमोस ने राजा पोरस को 321 ईसा पूर्व से
315 ईसापूर्व समयकाल में कत्ल कर दिया था। इसके अलावा एक तर्क यह भी है की चन्द्रगुप्त
मौर्य के करीबी आचार्य चाणक्य ने पोरस की हत्या करवा दी थी। ताकि वह आगे चल कर
उनके विजय अभियान में रोड़ा ना बन सके। पोरस नाम के महान योद्धा के जीवन प्रसंग भले
ही संदेह और रहस्य से भरपूर हों, पर उनकी
वीरता पर कोई संदेह नहीं कर सकता
है।
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