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इतिहास

माली लोग काश्तकारी यानी खेती करने में ज्यादा होशियार है क्योकिं वे हर तरह का अनाज , साग-पात , फलफूल और पेड़ जो मारवाड़ में होते है , उनको लगाना और तैयार करना जानते है। इसी सबब से इनका दूसरा नाम बागवान है। बागवानी का काम मालियों या मुसलमान बागवानों के सिवाय और कोई नहीं जानता। माली बरखलाफ दूसरे करसों अर्थात् किसानों के अपनी जमीनें हर मौसम में हरीभरी रखते है। उनके खेतों में हमेशा पानी की नहरें बहा करती है और इस लिये ये लोग सजल गॉवों में ज्यादा रहते है।   माली लोग अपनी पैदाइश महादेवजी के मैल से बताते है। इनकी मान्यता है कि जब महादेवजी ने अपने रहने के लिये कैलाशवन बनाया तो उसकी हिफाजत के लिये अपने मैल से पुतला बनाकर उस में जान डाल दी और उसका नाम ‘ वनमाली ’ रखा। फिर उसके दो थोक अर्थात् वनमाली और फूलमाली हो गए। जिन्होनें वन अर्थात् कुदरती जंगलों की हिफाजत की और उनको तरक्की दी , वे वनमाली कहलाये और जिन्होनें अपनी अक्ल और कारीगरी से पडी़ हुई जमीनों में बाग और बगिचे लगाये और उमदा-उमदा फूलफल पैदा किये , उनकी संज्ञा फूलमाली हुई। पीछे से उनमें कुछ छत्री(क्षत्रिय) भी परशुराम के वक्त में मिल गय...